हेलो दोस्तों "Manjilkikhoj.in" blog मे आपका स्वागत है। इस लेख में हम होरा शास्त्र विषय में विस्तार से पढ़ेंगे। समस्त मानव जीवन ज्योतिष विज्ञान पर आधारित है और आजकल बहुत सारे लोग इंटरनेट पर इसकी जानकारी ढूंढते हैं ,परन्तु उनमें सटीकता न होने पर पाठकों को निराश होना पड़ता है। इसलिए इस लेख में मैं आपको step by step होरा शास्त्र के बारे मे बताऊंगा।दोस्तों जैसे कि मैंने पिछली पोस्ट में बताया था कि भारतीय ज्योतिष अपने पांच अंगों पर आधारित है आज हम यहां दूसरे अंग यानि होरा शास्त्र के बारे मे जानेंगे।
होरा शास्त्र
किसी मनुष्य के जन्म कालीन लग्न द्वारा उसके जीवन के सम्पूर्ण सुख-दुख का निर्णय पहले ही कर देना होरा स्कन्ध का सामान्यतः मूल स्वरूप है।होरा शास्त्र को कुछ विद्वान जातक शास्त्र भी कहते हैं। ज्योतिष में प्रमुख शब्द "अहोरात्र "है,जिसका आदि और अन्तिम अक्षर हटाने से होरा शब्द बना। अहोरात्र का अर्थ है दिन और रात, अतः दिन रात को लघु शब्द में स्पष्ट करने को होरा शब्द प्रचलित हुआ।कालान्तर में इसके भी दो भाग हो गए। जातक सम्बन्धी विषय जिसमें आया वह जातक कहलाया और दूसरा भाग ताजिक हुआ। ज्योतिष शास्त्र का जो स्कन्ध कुण्डलियों का निर्माण करता है और जो व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित है वह होराशास्त्र या जातक के नाम से विख्यात है।
वृहजातक में वराहमिहिर ने दो बातों पर विशेष बल दिया है-
(१) होराशास्त्र कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्तों से सम्बन्धित है ।
(२) शास्त्र बताता है कि कुण्डली एक नक्सा या योजना मात्र है जो पूर्वजन्म में किए गए कम से उत्पन्न किसी व्यक्ति के जीवन के भविष्य की ओर निर्देश करती है।
जन्म कुंडली में स्थित द्वादश भाव, उनमें स्थित ग्रह और ग्रहों की आपसी दृष्टि आदि का विवेचन होरा शास्त्र के अन्तर्गत ही किया जाता है।
प्राचीन काल की स्थिति
सर्व प्रथम ग्रहों के आधार पर ही मानव जीवन के भविष्य को स्पष्ट किया जाता था, धीरे-धीरे उसमें सूक्ष्मता आती रही, क्योंकि द्वादश राशियों के अन्तर्गत ही ग्रहों का परिचलन होता है, अतः पहले राशियों के आधार पर और राशियों से संबंधित ग्रहों के प्रभाव को लेकर ही फल निरूपण किया जाता था।
परन्तु बाद में देखा गया कि किसी भी राशि का निर्माण सवा दो नक्षत्र से होता है, यदि ग्रहों का अध्ययन नक्षत्र पद्धति से किया जाय, तो ज्यादा सूक्ष्मता आ जायेगी। इस प्रकार आगे चलकर नक्षत्र ज्योतिष का विकास हुआ, इससे फल कथन अधिक सटीक हुआ।
इस शास्त्र पर कई ग्रन्थों की रचना हुई है तथा इस शास्त्र के प्रसिद्ध विद्वानों में वराहमिहिर,नारचन्द्र,सिद्धसेन ढुण्ढिराज आदि प्रमुख हैं। उन्होंने इस शास्त्र को अत्यंत सूक्ष्मता पूर्वक देखा और समझा, उसके बाद उन्होंने जिन सिद्धान्तों की रचना की,वे आज भी होरा शास्त्र के अन्तर्गत मान्य हैं।
ग्यारहवीं शताब्दी में होरा शास्त्रकारों ने नयी पद्धति विकसित की, जिसके अन्तर्गत ग्रह बल, ग्रह वर्ग तथा विंशोत्तरी दशा के माध्यम से फल कथन स्पष्ट किया गया और वह अधिक प्रामाणिक व सत्य सिद्ध हुआ। तब से लगातार आज तक इन्हीं सिद्धान्तों के आधार पर फल कथन किया जा रहा है।
ज्योतिष में होराशास्त्र का महत्व
होरा शास्त्र से जातक की धन सम्पदा सुख सुविधा के विषय में विचार किया जाता है. संपति का विचार भी होरा लग्न से होता है, राशि, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, षोडश वर्ग, ग्रहों के दिग्बल, काल बल, चेष्टा बल, दृष्टिबल, ग्रहों के कारकत्व, योग, अष्टवर्ग, आयु, विवाह योग, मृत्यु प्रश्न एवं ज्योतिष के फलित नियम होरा शास्त्र के अंतर्गत आते हैं।
होरा शास्त्र का प्रभाव
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार एक अहोरात्र अर्थात दिन-रात में 24 होराएं होती हैं जिन्हें हम 24 घंटो के रूप में जानते हैं जिसके आधार पर हर एक घंटे की एक होरा होती है जो किसी ना किसी ग्रह की होती है। प्रत्येक वार की प्रथम होरा उस ग्रह की होती है जिसका वार होता है जैसे यदि रविवार है तो पहली होरा सूर्य की ही होगी जब आप होरा का निर्धारण करते हैं।
ग्रहों की होरा
सूर्य की होरा
सूर्य की होरा में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करना, पदभार संभालना, उच्च अधिकारियों से भेंटवार्ता करना, टेंडर के लिए आवेदन एवं माणिक रत्न धारण करना शुभ माना जाता है।
चंद्र की होरा
चंद्र की होरा को सभी कार्य के लिए शुभ माना गया है अतः आप किसी भी कार्य का श्रीगणेश कर सकते हैं। इसके अलावा चंद्र की होरा में बागवानी, खाद्य संबंधी क्रियाएँ, समुद्र व चांदी से संबंधित कार्य एवं मोती धारण करने के लिए बहुत शुभ मानी जाती है।
मंगल की होरा
मंगल की होरा में पुलिस व अदालती मामलों से संबंधित कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस होरा में नौकरी ज्वॉइन करना, सट्टा लगाना, उधार देना, किसी सभा-समिति में हिस्सा लेना, मूंगा एवं लहसुनिया रत्न धारण करना शुभ फलदायी होता है।
बुध की होरा
बुध की होरा में नए व्यापार शुरू करना लाभकारी होता है। इसके अलावा इस होरा में लेखन व प्रकाशन का कार्य करना, प्रार्थना पत्र देना, विद्यारंभ करना, कोष संग्रह करना और पन्ना रत्न धारण करना भी शुभ माना जाता है।
गुरु की होरा
इस होरा में उच्च अधिकारियों भेंट करना, शिक्षा विभाग में जाना व शिक्षक से मिलना, विवाह संबंधी कार्य करना और पुखराज रत्न धारण करना शुभ माना जाता है अर्थात इन कार्यों को करने में आपको सफलता मिलेगी।
शुक्र की होरा
इस होरा काल में जातकों के लिए नए वस्त्र पहनना, आभूषण ख़रीदना अथवा उसे धारण करना, फ़िल्म जगत से संबंधित कार्य करना, मॉडलिंग करना, यात्रा पर जाना एवं हीरा व ओपल रत्न धारण करना शुभ माना जाता है।
शनि की होरा
शनि की होरा में मकान की नींव रखना अच्छा माना जाता है। इसके साथ इस होरा काल में कारखाना शुरू करना, वाहन अथवा भूमि ख़रीदना और नीलम व गोमेद रत्न को धारण करने से जातकों को कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है।