हेलो ब्लॉगर आप सभी का "Manjilkikhoj.in"blog में स्वागत है।इस लेख में हम "ज्योतिष शास्त्र का प्रारम्भिक परिचय "के बारे में विस्तार पूर्वक पढ़ेंगे। आजकल बहुत सारे लोग इंटरनेट पर ज्योतिष संबंधी जानकारी ढूंढते हैं और कई सारे ब्लॉग पर भी कुछ जानकारी मिलेगी,परन्तु उनमें सटीकता न होने के कारण पाठकों को निराश होना पड़ता है । इसलिए आज मैं आपको step by step "ज्योतिष शास्त्र का प्रारम्भिक परिचय"के बारे में बताऊंगा।
ज्योतिष शास्त्र का प्रारम्भिक परिचय
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ज्योतिष अपने आप में एक प्रेरणादायक और गूढ़ रहस्यों का विषय है। सृष्टि के आरम्भ में ही ज्योतिष का प्रचलन हो गया था और तब से लगातार आज तक मानव जाति के उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाता आ रही है।
मानव जाति ने ज्यों ज्यों अपना विकास किया है, उसके पीछे ज्योतिष का सुदीर्घ हाथ रहा है। आज मानव उन्नति के उस स्थान पर खड़ा है, जहां से वह नक्षत्रों व ग्रहों का भली-भांति से अध्ययन करने में समर्थ है। इसके साथ ही आज के मानव ने ज्योतिष के माध्यम से अनेक रहस्यों को भी उजागर किया है,जो अभी तक अज्ञात थे।
ज्योतिष शास्त्र के मुख्य अंग
ज्योतिष नियमों के अनुसार ज्योतिष के मुख्य पांच अंग माने गये हैं।जो इस प्रकार हैं - सिद्धांत,होरा, संहिता,प्रश्न और शकुन शास्त्र। य़दि इन पांचों अंगों का विश्लेषण किया जाए, तो यह ज्ञात हो जाता है कि आज के विज्ञान में जितने भी सक्रिय तत्व हैं,उन सभी का समावेश इन पांचों अंगों के अन्तर्गत ही है।
प्रारम्भिक काल में ज्योतिष शास्त्र का महत्व
प्रारम्भ में ज्योतिष का उपयोग केवल नक्षत्रों का अध्ययन मात्र ही था, परन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे वैसे इसमें नये - नये सिद्धांत और तथ्यों का समावेश किया गया।
आज ज्योतिष अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञान है, जिसके अन्तर्गत मनोविज्ञान,जीव- विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, रसायन विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान आदि भी आते हैं।
प्राचीन ऋषियों अनुभव
सर्वप्रथम जब भारतीय महर्षियों की दृष्टि आकाशगंगा पर पड़ी और उन्होंने चन्द्रमा, तारों व ग्रह आदि को सूक्ष्मतापूर्वक परखना प्रारम्भ किया, तो भयभीत होकर उन्होंने इन्हें देवताओं का रूप दे दिया। वेदों में भी कई स्थानों पर ग्रहों को तथा सूर्य - चन्द्र को देवता स्वरूप मानकर इनकी स्तुति की गई है।
महर्षियों की अध्ययन और खोज
धीरे-धीरे उन्होंने यह भी अनुभव किया कि इन नक्षत्रों व ग्रहों का सीधा प्रभाव मानव पर पड़ रहा है और इनके प्रभाव के अनुसार ही मानव जीवन संचालित होता है। मनुष्य पर इनका प्रभाव व्यक्तिगत व सार्वजनिक रूप से पड़ता है, इसलिए मनुष्य के
सुख - दुःख,लाभ - हानि, उन्नति - अवनति आदि पर इनका प्रभाव निश्चित हुआ।इसी प्रकार भूकंप, ज्वालामुखी, महामारी आदि के कारण भी ग्रह - नक्षत्र ही हैं।
महर्षियों ने एक तरफ ग्रह और नक्षत्रों का अध्ययन किया तो दूसरी ओर इनके प्रभाव का विवेचन करना शुरू किया।
इस प्रकार ग्रहों के अध्ययन को "गणित पक्ष"और इनके फलस्वरूप को "फलित पक्ष" की संज्ञा दी गई।
इस प्रकार महर्षियों ने ज्योतिष की उपादेयता सिद्ध कर दी कि मनुष्य जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम के पीछे इन ग्रह - नक्षत्रों का हाथ ही होता है।