है। इसलिए इस लेख में मैं आपको step by step "शकुन शास्त्र"के बारे मे बताऊंगा।
भारतीय संस्कृति में ज्योतिष शास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। यह केवल ग्रहों और नक्षत्रों के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अनेक उपशास्त्र भी शामिल हैं जो हमारी दैनिक जीवन की घटनाओं को विश्लेषित करने में सहायक होते हैं। इन्हीं उपशास्त्रों में से एक है शकुन शास्त्र। इसके अन्तर्गत पशु पक्षियों की भाषा का अध्ययन किया जाता है और यह देखा जाता है कि व्यक्ति के जाते समय कोई पशु या पक्षी किस दिशा की ओर अथवा किस तरह से बोलता है।
शकुन शास्त्र ज्योतिष का वह अंग है जो शुभ-अशुभ संकेतों और लक्षणों का अध्ययन करता है। इसे प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण माना गया है और इसके माध्यम से व्यक्ति अपने भविष्य के संकेतों को पहचान सकता है।
शकुन शास्त्र का परिचय
शकुन शास्त्र का शाब्दिक अर्थ है 'संकेतों का विज्ञान'। इसमें विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं, जीव-जंतुओं की गतिविधियों और दैनिक जीवन की सामान्य घटनाओं को विश्लेषित किया जाता है।इस शास्त्र का बहुत अधिक विकास हुआ और इसके द्वारा वर्षा कब होगी, चिड़ियों के किस प्रकार बोलने से वर्षा की कमी रहेगी या भूकंप आयेगा अथवा महामारी की सम्भावना आदि का अध्ययन इसी प्रकार किया जाने लगा। यह माना जाता है कि इन घटनाओं के माध्यम से देवता हमें कुछ संकेत देते हैं।
शकुन शास्त्र का इतिहास
शकुन शास्त्र की उत्पत्ति वैदिक काल से मानी जाती है। प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, रामायण, महाभारत आदि में शकुन और अपशकुन का वर्णन मिलता है। महाभारत में शकुन शास्त्र के माध्यम से युद्ध की संभावनाओं और परिणामों की भविष्यवाणी की गई थी।
प्रमुख ग्रंथ
प्रमुख ग्रंथों में निम्नलिखित इसके प्रामाणिक रूप से माने जाते हैं, जिसमें इस शास्त्र का विस्तार से विवेचन किया गया है।
1.वसन्तराजशकुन
2.अद्भुतसागर
3.शकुनशास्त्र
- शकुन के प्रकार
शकुन शास्त्र में शकुन को मुख्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया गया है:
शुभ शकुन:
ये संकेत सकारात्मक और अनुकूल होते हैं, जो किसी कार्य की सफलता या सुखद परिणाम की ओर इशारा करते हैं।
अशुभ शकुन:
ये संकेत नकारात्मक और प्रतिकूल होते हैं, जो किसी कार्य में बाधा या अप्रिय परिणाम की चेतावनी देते हैं।
शभ शकुन के उदाहरण
- सुबह उठते ही दूध, घी, फूल, फल या कोई शुभ वस्तु दिखना।
- यात्रा पर निकलते समय गाय, ब्राह्मण, या किसी शुभ व्यक्ति का दर्शन करना।
- किसी महत्वपूर्ण कार्य के पहले देवी-देवता की मूर्ति या तस्वीर देखना।
अशुभ शकुन के उदाहरण
- काली बिल्ली का रास्ता काटना।
- घर से निकलते समय उलूक या कौवे का कर्कश स्वर सुनना।
- यात्रा पर निकलते समय छींक आना या कोई दुर्घटना का संकेत मिलना।
शकुन शास्त्र के महत्वपूर्ण तत्व
- पशु-पक्षियों के शकुन
पशु-पक्षियों के व्यवहार और उनकी गतिविधियों को शकुन शास्त्र में विशेष महत्व दिया गया है। इनके माध्यम से शुभ और अशुभ शकुन की पहचान की जाती है।
कौआ:
कौवे का कर्कश स्वर अशुभ माना जाता है, जबकि उसका मधुर स्वर शुभ संकेत देता है।
गाय:
गाय का दूध देना शुभ माना जाता है, जबकि गाय का रंभाना किसी विपत्ति का संकेत हो सकता है।
कुत्ता:
कुत्ते का रोना अशुभ होता है, जबकि उसका खेलना और खुश होना शुभ माना जाता है।
2. प्राकृतिक घटनाओं के शकुन
प्राकृतिक घटनाओं जैसे कि मौसम, आंधी, बिजली, वर्षा आदि के माध्यम से भी शकुन देखे जाते हैं।
वर्षा:
यात्रा के समय वर्षा होना शुभ माना जाता है, यह संकेत देता है कि यात्रा सफल होगी।
आंधी-तूफान:
आंधी या तूफान किसी अशुभ घटना का संकेत हो सकता है।
3. मानव गतिविधियों के शकुन
मनुष्यों की सामान्य गतिविधियों और दैनिक कार्यों में भी शकुन देखे जाते हैं।
छींक:
यात्रा के समय छींक आना अशुभ माना जाता है।
हिचकी:
हिचकी आना संकेत देता है कि कोई व्यक्ति आपको याद कर रहा है।
शकुन शास्त्र का उपयोग
शकुन शास्त्र का उपयोग प्राचीन काल से ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता रहा है। विशेषकर यात्रा, विवाह, व्यवसाय और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में शुभ और अशुभ शकुन का ध्यान रखा जाता है।
यात्रा:
यात्रा से पहले शुभ शकुन देखकर यात्रा का समय निर्धारित किया जाता है।
विवाह:
विवाह से पहले वर-वधू की कुंडली मिलान के साथ-साथ शकुन का भी ध्यान रखा जाता है।
व्यवसाय:
नए व्यवसाय की शुरुआत से पहले शुभ शकुन देखकर ही कार्य प्रारंभ किया जाता है।
शकुन शास्त्र की वैज्ञानिकता
आधुनिक समय में शकुन शास्त्र को अंधविश्वास माना जाता है, लेकिन इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी हो सकते हैं। जैसे कि पशु-पक्षियों का व्यवहार पर्यावरणीय परिवर्तनों का संकेत हो सकता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
निष्कर्ष
शकुन शास्त्र भारतीय ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो जीवन की दैनिक घटनाओं और प्राकृतिक संकेतों के माध्यम से शुभ-अशुभ का ज्ञान कराता है। यह हमें अपने भविष्य के प्रति सचेत करता है और सही दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है। प्राचीन काल से ही इसका महत्व रहा है और आधुनिक युग में भी इसे उचित संदर्भ में समझकर लाभ उठाया जा सकता है। हालांकि, अंधविश्वास से बचते हुए, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका अध्ययन करना अधिक उपयुक्त होगा।